01 मई, 2018

मैं क्यों लिखता हूं :

बची रहेगी यह धरती जब तक तुम इस पर टहलती हो  ( डॉ. सत्यनारायण )

माधव राठौड़

सामान्यता मैं लिखने से बचता हूँ पर कभी कभी शब्द घनीभूत होकर जेहन पर इतने भारी हो जाते है कि उनको केवल माध्यम बन उन्हें रास्ता भर देता हूँ |अपने आसपास के समय को जब संवेदनशील होकर देखता हूँ तो शब्दों की पीडाओं से भर जाता हूँ या फिर यूँ कहूँ कि शब्द जेहन में खदबदाते है जिससे हिये के भीतर कुछ दाजने सा लगता है |उस दाज को जब पन्ने पर शब्दों में ढालता हूँ तो मई जून के तपते रेगिस्तान में पहली बारिश के बाद धोरे से उठती ठंडक सी महसूस होती है |यह शब्द कभी कहानी,कविता,रिपोर्ताज के आकार में ढलने लगते है |लेकिन पीडायें बेहद निजी होती है तो वो डायरी में ही उतरती है |

माधव राठौड़


अगर खुद से पूछूं कि कविता क्यों लिखता हूँ तो दो चार वजह सामने आती है |कई बार कविताएँ बेहद निजी पलों की फुसफुसाहट होती है तो कुछ वह

सब- टेक्स्ट होती है जिसे कभी सीधे सीधे कहा या बोला नहीं गया| कुछ कविताएँ हमारे आसपास के परिवेश में फैली हुई अव्यवस्था और बेचैनी का प्रतिरूप होती है |कुछ सपाट बयानबाजी होती है जिसमें साधारण मन के सुख-दुःख, ख़ुशी-पीड़ा अभिव्यक्त करती हुई नजर आती है | किसी विदेशी कवि ने कहीं लिखा है कि जीवन और मृत्यु के बीच जो भी कुछ हमारा दैनंदिन क्षण होता है, वह भी प्राथमिक तौर पर काव्यात्मक ही होता है: यानी भीतरी और बाहरी का संधि-स्थल, कालहीनता के आंतरिक बोध और क्षणभंगुरता के बाह्यबोध के बीच।
सच कहूँ तो जब कविता  पहली बार मोबाइल, लेपटोप, डायरी,सिगरेट की पन्नी ,रद्दी पेम्पलेट पर उतरती है तो वह रेगिस्तानी गाँव के गुवाड़ी की खुशबू लिए होती है |फिर तो धीरे क्राफ्ट और ड्राफ्ट के ट्रीटमेंट के साथ मेट्रो के सभ्य लोगों सी बन जाती है |

नाइजेरियन कवि बेन ओकरी ने कहा था कि हमें उस आवाज़ की ज़रूरत है, जो हमारी ख़ुशियों से बात कर सके, हमारे बचपन और निजी-राष्ट्रीय स्थितियों के बंधन से बात कर सके। वह आवाज़ जो हमारे संदेहों, हमारे भय से बात कर सके; और उन सभी अकल्पित आयामों से भी जो न केवल हमें मनुष्य बनाते हैं, बल्कि हमारा होना भी बनाते हैं- हमारा होना, जिस होने को सितारे अपनी फुसफुसाहटों से छुआ करते हैं।
इसलिए  मेरे लिए कविता स्वांत सुखाय पहले है जिसके साथ समाज ,देश और मानवता की चिन्ताएं सहजता के साथ आती है कभी सा-उदेश्य विचारधारा या वर्ग को ध्यान में रखकर कभी लिखने का प्रयास नहीं किया |

तपते रेगिस्तान में जून की आँधियों में दीवड़ी में रखे जल को पीते हुए जो तृप्ति का एहसास मुसाफिर करता है ठीक वैसा ही एहसास भीतर से बन्तुलिये सी बैचेन करती पीड़ा को  रात को तीन बजे कागज पर उतरी कविता को देखकर होता है |

फिर से डॉ सत्यनारायण के शब्दों में कह रहा हूँ कि  इस चाकू समय में एक संवेदनशील मन को यह मासूम कविताएँ ही जिन्दा रखती है वरना इस क्रूर तपते तावड़े में कभी का झुलस जाता |
००



लेखक परिचय

माधव राठौड़ के बारे में परिचित जानते हैं कि माधव कहानी,कविता,समीक्षा,आलेख आदि लिखते है,  कभी कभार मंचो और गोष्ठियों में दिखाई भी देते है। आप हर महीने की किसी न किसी पत्र-पत्रिकाओं में उनको देख सकते हो।

फेसबुक पर भारत भर के  पाठक मित्रों से रूबरू होते हुए देखा जा सकता है।

1985 जन्मे माधव भारत-पाक बॉर्डर के रेगिस्तानी गाँव से आते है जो कानून की पढ़ाई के बाद अपने आसपास की देखी और जी गई दुनिया को कहानी और कविता में लम्बे समय से संजीदगी और गम्भीरता से ढाल रहे है।

कटु और यथार्थ  जीवन उनकी कविताओं का स्थाई भाव है।

इनकी  कविताएं एक संवेदनशील मन और जिज्ञासु मस्तिष्क की भाव और विचारशीलता की सामंजस्यता लिए हुए है, जो बाह्य और भीतरी जगत दोनों में बेहद महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप लगती हैं | उनसे फेसबुक पेज  "माधव राठौड़ का सृजन"

पर आसानी से मिला जा सकता है या फिर उन्हें लम्बा खत लिखकरmsr.skss@gmail.com पर मेल किया जा सकता है ।

आवाज सुननी हो तो फिर  9602222444 पर फोन  करना होगा और मिलने की चाहत हो तो आपको जोधपुर ही आना होगा।
००




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें