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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

05 मई, 2018

मैं क्यों लिखता हूं ? 


रमेश शर्मा
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अक्सर मैं सोचता हूं कभी-कभी , कि मैं क्यों लिखता हूं ? जब बिना लिखे भी दुनियाँ में अधिकांश लोग अपना जीवन  बड़े आराम से जी ले रहे हैं  , तब लिखने में मुझे अपना समय क्यों जाया करना  चाहिए ? एक बिजनेसमैन सोचता है कि किस तरह कम समय में अधिक से अधिक ग्राहकों के सम्पर्क में आकर वह अधिक से अधिक मुनाफा कमा सके , एक डॉक्टर सोचता है कि कैसे कम समय में अधिक से अधिक मरीजों को निपटाकर पैसे संग्रहित किए जा सकें  । एक ट्यूटर सोचता है कि कैसे समय का अधिकाधिक उपयोग कर विद्यार्थियों के अधिक से अधिक समूहों को पढ़ाने का प्रयोजन हो और अर्थोन्मुख होने का कीर्तिमान  बनाया जा सके । ऐसी सोच के आज के इस गतिमान प्रवाह में जहां अपने समय को अर्थ में बदलने की होड़ लगी हो तब एक लेखक के मन में यह विचार आना स्वाभाविक है कि मैं क्यों लिखता हूँ । यह जानते हुए भी कि लिखना , अपने समय को अर्थ में बदल पाने की कला से कभी आबद्ध नहीं हो सकता उसके बावजूद भी अगर मैं लिखता हूँ तो इस लिखने के , मेरे जीवन में गहरे निहितार्थ हैं । इस निहितार्थ में जीवन के उन सारे मूल्यों के नाभिनालबद्ध होने की गहरी आकांक्षा है जिसे मैं अपने जीवन के साथ-साथ दूसरों के जीवन के आसपास भी देखना चाहता हूँ । लेखकों के ऊपर यह आरोप भी लगाए जाते रहे हैं कि वे यश की इच्छा के गंभीर रोग से ग्रसित होते हैं और उनका लिखना इसी रोग का प्रतिफलन है । पर यह तथ्य भी सही प्रतीत नहीं होता , क्योंकि यश की दौड़ में आज का लेखक कहीं भी ठहरता हुआ नजर नहीं आता  । यह एक ऐसा दौर है जिसमें अनुष्का शर्मा ,विराट कोहली,सलमान खान , अमिताभ बच्चन  जैसे विचारशून्य सेलेब्रेटियों ने यस की लगभग समूची जगह को घेर सा लिया है । आज की यह दौड़ विचारशून्यता को पोषित करने का दौर है जहां लेखक के लिए कोई जगह शेष नहीं है , इसके बावजूद अगर मैं लिखता हूँ तो मेरा लिखना यशोगामी होना कैसे हो सकता हूँ ? मेरे आसपास क्या सबकुछ ठीक है ? जब देश दुनियाँ की अधिकांश आबादी ने अपने समूचे समय और जीवन को अर्थ उपार्जन और काम वासना की तृप्ति के लिए ही रख छोड़ा है ऐसे में सबकुछ भला कैसे ठीक हो सकता है ? मुझे यह भी मालूम है कि मेरे लिखने से सब कुछ ठीक नहीं हो सकता फिर भी मैं लिखता हूं । इस लिखने में एक सूक्ष्म आकांक्षा है कि सबकुछ न सही , उसके राईभर आकार का हिस्सा भी गर ठीक हो सके , तब मेरा लिखना सार्थक है  । यह सोच जेहन में आती-जाती है इसलिए भी मैं लिखता हूं ।

रमेश शर्मा 

मेरा लिखना देश में किसानों की आत्महत्याओं को रोक नहीं सकता , मेरे लिखने से देश में हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध नहीं रुक जाएंगे । मेरे लिखने से राजनीति में फैली गंदगी नहीं रुक जाएगी , मेरे लिखने से देश में पसरी अराजकता खत्म नहीं हो जाएगी । इन सबके बावजूद अगर मैं लिखता हूँ तो यह चाहता हूं कि मेरे भीतर पसरी बेचैनी थोड़ी कम हो जाए , मैं इसलिए लिखता हूं की इन बुराइयों का विरोध कर सकूं। इन बुराइयों के विरोध से उपजा मेरा लेखन उस बीज की तरह है जिसमें किसी दिन पेड़ बनने की संभावना मुझे नजर आती है इसलिए भी मैं लिखता हूं । मैं इसलिए लिखता हूं कि कहीं दुनिया की अराजकता में मैं भी किसी दिन बह  न जाऊं । मेरा लिखना मेरे भीतर की मनुष्यता को बचाए रखने का एक उद्यम भी है , इसलिए भी मैं लिखता हूं । मैं सिर्फ अपने लिए नहीं लिखता बल्कि आपके लिए भी लिखता हूं कि आप मेरे लिखे को कभी समय निकाल कर पढ़ सकें और अपनी खोयी हुई मनुष्यता की ओर लौटने की कोशिश करें ।अगर आपके लिए पढ़ना संभव ना भी हुआ तो मेरे लिखने से दुनिया को कोई नुकसान भी नहीं होने वाला है , क्योंकि मैं कोई हत्यारा , बलात्कारी और लोगों के दिलों-दिमाग में डर पैदा करने वाला शख्स भी नहीं हूं । मैं लिखने वाला एक अदना सा आदमी भर हूँ , आपके लिए जिसे लेखक मान लेने की कोई मजबूरी भी नहीं है । मेरे लिखे से फिर भी आप अपने अराजक होने की छवि से डर जाते हैं तो इसका अर्थ है कि मनुष्यता के पक्ष में इस डर को बनाए रखने के लिए मेरा लिखना कितना महत्वपूर्ण है । अराजक लोगों के इस डर ने ही तो दुनियाँ भर में शब्द और विचार  की महत्ता को स्थापित किया है । इस स्थापना को मैं और प्रगाढ़ करना चाहता हूं ,  मैं पूरी दुनियां में मनुष्यता को बचाए रखने का पक्षधर हूँ , इसलिए भी मैं लिखता हूं ।
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रमेश शर्मा कहानीकार-कवि छग: परिचय 
नाम: रमेश शर्मा 
जन्म: छः जून छियासठ , रायगढ़ छत्तीसगढ़ में .
शिक्षा: एम.एस.सी. , बी.एड. 
सम्प्रति: व्याख्याता 
सृजन: एक कहानी संग्रह मुक्ति 2013 में बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित .
*कहानियां: समकालीन भारतीय साहित्य , परिकथा, हंस ,पाठ ,परस्पर , अक्षर पर्व, साहित्य अमृत, माटी इत्यादि पत्रिकाओं में प्रकाशित . 
*कवितायेँ: इन्द्रप्रस्थ भारती, कथन , समावर्तन ,परिकथा ,सूत्र, सर्वनाम, अक्षर पर्व, माध्यम, लोकायत, आकंठ, वर्तमान सन्दर्भ इत्यादि पत्रिकाओं में प्रकाशित !  
संपर्क : 92 श्रीकुंज , बीज निगम के सामने , बोईरदादर , रायगढ़ (छत्तीसगढ़), मोबाइल 9752685148

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