image

सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

16 मई, 2018


पूर्णिमा शर्मा की लघु कथाएं 




पूर्णिमा शर्मा 



रिश्ते 



300 किलोमीटर का भाई के घर का रास्ता बड़ी मुश्किल से कटा था ऋतू का ! सर्दी के मौसम में भरी बरसात और रास्ते में खुदी हुई सड़कों ने कीचड़ कर रखा था ! भाई के पूरे होने की खबर रिश्तेदारों तक पहुंच गयी थी और मातमपुर्सी के फोन आये जा रहे थे पर सभी फोन उसके पति रमेश  सुन थे ! उफ़!!  कितना दिखावा है दुनियां में ? बीमार था रघु  तब ना कोई देखने आया ना हाल पूछा,सारी आत्मीयता आज के दिन को रखी थी ?

थकी-हारी,लड़खड़ाते कदमों से दूसरी मंज़िल के  घर पहुंची तब रात के 10 बज रहे थे ! दरवाज़ा खुला था,बंद करने वाले की साँसे बंद हो चुकी थीं ! बर्फ की सिल्ली पर लेटे  रघु  के चेहरे से लगा रहा था अभी उठ कर हमेशा की तरह मुस्कुरा कर स्वागत करेगा ! अब तक की रोकी रुलाई बाँध तोड़ चुकी थी,भाभी सिरहाने पत्थर बनी बैठी थी ! तभी भाभी की छोटी बहन पानी का गिलास लेकर  बोली,

"दीदी,अंदर कमरे में चलिए,भैया-जीजाजी को बात करनी है !"

कमरे में भाभी के दोनों भाई और बड़े जीजा के साथ उसके बड़े भाई जो पहले आ चुके थे सभी ऋतू और रमेश का इंतज़ार कर रहे थे! बात भाभी के भाई ने शुरू की क्यों कि उन्हें ही दाह संस्कार का सारा इंतेज़ाम करना था !

"दीदी,होनी तो अपनी करनी कर गयी ! हमे पता चले कि मुखाग्नि कौन देगा तो सुबह शुद्धि के समय के लिए बाजार से उसके नाप के कपडे मंगवा सकें ! "


ऋतू ने भीगी पलकें उठा कर बड़े भैया की ओर आशा भरी नज़रों से देखा ! वो तैयारी से आये थे ,

"देखिये साहब,आजकल तो लड़कियां भी सभी जगह आगे बढ़ कर सब काम कर रही हैं बिट्टी..."( आँखें कह रही थीं जब वसीयत बिट्टी को मिलनी है तो वही करे )


"करती होंगी ! हमारे यहाँ लड़कियां शमशान नहीं जातीं, ये काम मर्द ही करते हैं !"


ऋतू के आंसू सूख चुके थे उनकी जगह क्रोध और धिक्कार के भाव आ जा रहे थे ! यह वही बड़े भाई हैं जो हमेशा ऋतू और रघु पर रौब गांठते रहे यह कह कर कि,"बड़ा भाई पिता के समान  होता है ? रघु ने हमेशा उन्हें पिता तुल्य जाना ! क्या यही होता है खून का रिश्ता या कि खून की जगह पानी ने ले ली ? क्या जिनके बेटा  नहीं होता बेटी होती है उनका क्रिया कर्म में ऐसी ही छीछालेदर होती है ? काश वो बहन ना होकर भाई होती तो रघु के पार्थिव शरीर को इनका मुहं ना जोहना होता !
 तभी सन्नाटे को तोड़ते हुए रमेश ने कहा,"भैया,आप मेरे नाप के कपडे मंगवा लीजिये !

००





कृतघ्न


दालान मे बैठे पिता जी अखबार पढने की चेष्टा रहे थे। मगर अंदर से आती सामान के उठा-पटक की तेज आवाजें उन्हें परेशान कर रही थीं। संशय के बादल घुमड़-घुमड़ कर उन्हें डरा रहे थे, कहीं उन्हौंने गलत तो नहीं किया?


अमरीका से करोड़ों डॉलर कमा कर लौटा बेटा अब पिता के दो कमरों के घर पर नज़र गढ़ाए था। पहले उसने उनका बिस्तर शयन कक्ष से हटा कर बैठक में लगवा दिया। क्योंकि उसे शयनकक्ष अपनी पत्नी और खुद के लिए चाहिए था।

जब उसने बैठक को भी अपने बच्चों के सोने और पढने के लिए माँगा और उनका बिस्तर बैठक से खुले दालान में पहुंचाने की बात उठाई, तो अचानक उनका मोह भंग हो गया। ओह ! यह वही बेटा है जिसकी पढाई के लिए न जाने कितनी बार उन्हौंने अपनी इच्छाओं का दमन किया था।


बाप तो बाप ही होता है। उन्हौंने उसे एकांत में बुला कर इशारों में समझा ही दिया, "बेटा, यह छोटा घर तुम्हारे आलीशान सामान और मोर्डन बच्चों के हिसाब से फिट नहीं बैठता, बेहतर होगा कि तुम नया और बड़ा घर अपने लिए खरीद लो … मेरे मित्र आयेंगे तो बहु को नाहक चाय-पानी के लिए परेशान होना पड़ेगा ।"


पिता को तो जवाब देते नहीं बना । खिसिया कर उसने अपना सामान बाँधना शुरू कर दिया। साथ ही खुद की खरीदी चटाई, जूते की अलमारी,झाड़ू भी साथ में बाँध लिया।


जाते हुए बेटे को देखने के लिए उन्हौने जैसे ही अखबार हटाया। नजर ऊपर की ओर चली गयी। जहाँ आसमान बिल्कुल साफ था और चमकता हुआ सूरज मानो उन्हीं को देखकर मुस्कुरा रहा था।
००



 प्रबंध 

पंडित किशोरीलाल ने घर में कदम रखा ही था कि  बेटी कम्मो पानी का गिलास ले आयी, तिपाई पर रख कर चाय बनाने टीन की नाममात्र की रसोईनुमा ओटक में घुस गयी ! पानी पीकर दम भी नहीं ले पाए थे कि पंडिताइन ने धोती की छोर से पत्र निकाल कर पकड़ा दिया !

पत्र होने वाले समधी का था जिसमे शादी की तारीख पूछी थी ! उन्होंने एक उसाँस ली !

" बिटिया की शादी की कौन सी तारीख सोची है ? "सहमते और ठन्डे स्वर में पंडिताइन ने पुछा !

" हम्म ! यही गणना कर रहा था ! लगते अगहन की पञ्चमी बता देना उनको !" कहकर पंडित जी बुदबुदाने लगे .....

पंद्रह दिन कनागत के नौ दिन नवरात्रि के,फिर दशहरा पूजन ,दीपावली के पांच त्योहार शादी करने लायक दक्षिणा ,कपडे-लत्ते ,बर्तन सब जुट जाएंगे,बस दावत के पैसे जुटाने हैं ,ईश्वर करेंगे कुछ एक

निःश्वास लेकर कपडे बदलने लगे !

तभी दरवाज़े की कुण्डी खटकी पंडिताइन ने जाकर खोला,कुछ देर में वापिस आकर बताया,

"बगल की गली के सेठ धर्मदास का नौकर रामदीन था,सेठ जी के पड़पोता हुआ है !"

दोनों की आँखों में जुगनू सी चमक कौंध उठी !
००







 बेटी बेचवा 
(नयी सुबह )

करवाचौथ का बायना देने सुनंदा दीदी के घर गयी तो देखा अनोखी ख़ुशी से उनका चेहरा दप दप दमक रहा था मानो कुबेर का खज़ाना हाथ लगा हो ! एकांत मिलते ही उन्होंने मेरी जिज्ञासा शांत करने को ३-४ तस्वीरें थमा दीं जो किसी सुन्दर सलौनी  किशोरी की थीं और शायद विदेश में खींची हुई ! तस्वीरों में वो माता पिता संग जन्मदिन मनाती बहुत खुश नज़र आ रही थी !

" दी, यह मिष्ठी है ना ?"

दीदी मुस्कुरा दीं पर उस मुस्कान के पीछे छुपे दर्द की हल्की छाया वो चाह के भी छुपा नहीं सकीं थीं !

मैं अतीत में खो गयी ! दीदी को पींठ में कूबड़ था सो उनके लिए जो रिश्ता आता वो मुझे पसंद कर जाता ! प्रोफ़ेसर पांडे की पत्नी उन्हीं दिनों कैंसर की चपेट में आ तीन छोटे बच्चे छोड़ सिधार गयी थीं !पांडे जी भैया के अच्छे मित्र थे,बहुत विनम्र सुलझे विचारों के ! उम्र बीतती देख दीदी ने उनसे शादी को हामी भर ली थी ! शादी से पूर्व पांडे जी ने दीदी से अकेले में मिलने की इच्छा ज़ाहिर की और बिना लाग लपेट के सीधे सीधे कहा ,

" मेरे २ बेटे और १ बेटी पहली पत्नी से हैं सो मुझसे 'अपने बच्चे ' की आशा मत रखना ! पाल सकोगी माँ की तरह ?"

दीदी अचकचाई जरूर थीं किन्तु समझदारी से जवाब दिया ," बच्चे आप मुँह दिखाई में दे ही रहे हैं सो नहीं कहूँगी किन्तु मेरी भी एक शर्त है मैं अपनी नौकरी नहीं छोडूंगी !"

पांडे जी कवि भी थे और आये दिन कवि  सम्मेलन में बाहर आना जाना होता था सो बिना विरोध किया चार जनो के मध्य शादी संपन्न हुई,बिना किसी शोर शराबे के !

उस दिन के बाद दीदी ने तीनो बच्चों को सगी माँ बन पाला पढ़ाया और समय आने पर बैंक से कर्ज़ा लेकर शादी की,लोन लेकर मकान बनाया ! दोनों बड़े बच्चों दो दो बेटियां हुई उनके जश्न भी मनाये किंत " विमाता " का ढप्पा जो उनके माथे लगा वो लगा ही रहा ! छोटे बेटे की बहु भी एक कन्या को जन्म देते समय चल बसी ! परिवार में पांचवी का जिम्मा लेने की कुव्वत किसी में ना देख और अपनी नौकरी का समय काल समीप देख जीजाजी की सहमति से मेरी दूरदर्शी दीदी ने नवजात कन्या को सुदूर ऑस्ट्रेलिया में बसी अपनी बेऔलाद भतीजी को दे उसकी सूनी गोद हरी की और आज वही बच्ची तस्वीर में अपने अतीत से अनजान खुश दिख रही थी !

मुझे सोच में डूबा देख दीदी उदास हंसी हंस कर बोलीं," विमाता के साथ बेटी-बेचवा का लांछन सही,क्या फर्क पड़ता है मुझे मिष्ठी की ख़ुशी के आगे ?"
००




 तुम ऐसे ही रहना 

अभी अभी अरुण,वसुधा के भाई की तेरहंवी का ब्रह्मभोज ख़त्म हुआ था,पंडितों के बाद परिवार वालों ने और करीबी मित्रों ने भी किसी तरह मुहँ जुठार लिया था ! असमय की मृत्यु से सभी शोकमग्न थे तिस पर अरुण की पत्नी और बेटी का विलाप देख किसी से भी भोजन गले  निगलते नहीं बन रहा था !सभी जन माँ-बेटी को ढांढस बंधाने का असफल जतन कर रहे थे !

दूर खड़ी वसुधा पर किसका ध्यान जाता भला ? अरुण के बड़े भाई शमशान से आने के बाद ही जा चुके थे,तबियत ठीक ना होने की कह कर,मंझले भाई का परिवार भी दो दिन बाद चला गया ! बस बचे थे तो वसुधा और उनके पति ! बाकी सब भाभी के घरवाले थे ! वो कैसे जा सकती थी भला ,काम अधूरा छोड़कर ?

तभी उसका बुलावा आया ,अब अंतिम दुखदायी रसम भी पूरी तो होनी ही थी ! भाभी को चादर ओढानी थी ! वसुधा ने देखा,एक बड़े थाल में सफ़ेद ऊनी शाल,गुड़ की ढली,चावल के साथ सोने की दो चूड़ी ! वसुधा की अब तक रोकी रुलाई अब बाँध तोड़ बह चली थी ! जिस भाभी को लाल सुर्ख जोड़े में सजा कर घर की लक्ष्मी बनाकर लायी थी,जिसके आने से  चहका चहका रहता,दिन रात मोबाइल से विभिन्न परिधानों में तस्वीर ले कोलाज़ बनता थकता नहीं था उसे कैसे इन्ही हाथों से..... .. कलेजा मुहं को आ रहा था,पैरों में कम्पन्न हुए जा रहे और पेट में दर्द के मरोड़ उठ रहे थे ! कुछ दस मिनट वातावरण में स्तब्धता रही,फिर वसुधा ने अपने हेंड बेग से गुलाबी रंग का शाल निकाल भाभी के कंधे पर ओढ़ाया,सूने माथे पर छोटी सी बिंदी लगायी और हाथ में चूड़ी डालते हुए बोली,

"तुम ऐसे ही रहोगी,जैसे अरुण तुम्हे रखता आया था, मैं कोई ऐसी रस्म नहीं करुँगी जिससे भाई की आत्मा दुखी हो !" आंसू अभी भी सबकी आँखों में थे पर तासीर बदल चुकी थी ! चौकी पर रखी भाई की तस्वीर भी शायद मुस्कुरा रही थी !
००









 स्वाभिमान 
( ढीली पगड़ी )

घर में अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था !शाम जब से पिताजी ने पांडे जी से फोन पर बात की तभी से पिताजी बेचैन और माँ उदास दिखीं ! मीनू दी को शायद वजह पता चल चुकी थी,उनकी तरफ इना ने प्रश्नवाचक नज़रों से देख जानना चाहा तो दीदी नज़रें चुरा आंसू पोंछ रही थीं ! शायद पांडे परिवार ने 'पसंद ' की मोहर नहीं लगाई !

कल सुबह से ही घर में हलचल मची थी ! लड़के वालों की आवभगत में कोई कमी ना रहे सो घर को दुल्हन सा सजाया गया था !वैसे इरादा तो होटल में जाकर दिखाने का था किन्तु दादी माँ भी लड़के को एक नज़र देखना चाहती थीं और वो होटल जाने को तैयार नहीं थीं ! लड़का फौज में मेजर है,इना की हिदी टीचर का बेटा,गोरा-चिट्टा,छप्पन इंची चौड़ी छाती का सुदर्शन,मृदुभाषी !

पांडे जी सपरिवार आये तो दी हलके मेकअप और गुलाबी साड़ी में सजी चाय लेकर कमरे में गयीं ! थोड़ी औपचारिक बातों के बाद उन्हें वापिस अन्दर भेज दिया क्यों कि वो सबके सामने सहज नहीं हो प् रही थीं !लेकिन इना तो अपनी मैडम से निसंकोच बतियाये जा रही थी,उसे किस बात का संकोच होता ? एक घंटा पूरा परिवार यहाँ वहां की बात कर घर वापिस चला गया था और इना डूब गयी थी दीदी की शादी की तैयारी के सपनों में ! अब समझ नहीं आ रहा था यह सन्नाटा क्यों है ?

वो सोच में डूबी बैठी थी तभी माँ कमरे में आयीं !

" इना, तुम्हारी मैडम और उनके परिवार को मीनू की जगह तुम पसंद हो ! वैसे हमने उनसे कह दिया है कि शादी हम पहले मीनू की ही करेंगे वो इना से छह साल बड़ी है और इना की पढाई अभी पूरी नहीं हुई ! लेकिन रिश्ता पक्का करने से पहले तुम्हारी मंशा जान लेना जरुरी है तो सोच के बताओ क्या तुम्हे रिश्ता पसंद है ?"

इना पर गाज सी गिर गयी ! यह क्या बात हुई भला ? वैसे मैडम के बेटे में कोई बुराई नहीं थी लेकिन दीदी की भावनाओं का क्या ? वो जब भी उनसे मिलेंगी तो दिमाग में यह बात नहीं होगी कि 'इनका रिश्ता मेरे लिए आया था ?' क्या खुद इना के मन से ग्लानि जायेगी कभी ?

" माँ हम लड़कियां कोई सब्जी-भाजी थोड़े ही हैं कि यह नहीं वह ?मेरी तरफ से साफ़ ना है ,आप मना कर दो ! आखिर उन्हें भी तो पता चले कि अस्वीकार करने का दुःख कैसा होता है !"
००


पूर्णिमा शर्मा 

फ्लेट नंबर 702,टॉवर नंबर 5,

अरण्या सिग्नेचर,टी डी आई सिटी के सामने 

राम गंगा विहार,मुरादाबाद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें