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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

20 मई, 2018

हो ची मिन्ह की कविताएं

अनुवाद: सत्यव्रत

( हो ची मिन्ह वियतनामी क्रान्ति के नेता हुए हैं। 19 भी को उनका जन्मदिन रहता है। इस अवसर उनकी कुछ कविताएँ बिजूका के साथियों के लिए प्रस्तुत है। यह पोस्ट uniting working class की फेसबुक वॉल से साभार है ) 


हो ची मिन्ह

हो ची मिन्ह की गणना बीसवीं शताब्दी के शीर्षस्थ क्रान्तिकारियों, कम्युनिस्ट नेताओं और राष्ट्रीय मुक्ति-युद्धों के रणनीति-विशारदों में की जाती है। *वे एक ऐसी क्रान्ति के नायक और नेता थे, जिसने फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों को धूल चटाने के साथ ही जापानी फ़ासिस्ट आक्रमणकारियों का भी दुर्द्धर्ष प्रतिरोध किया था और दुर्जेय समझी जाने वाली अमेरिकी साम्राज्यवादी सेना की भी नाक मिट्टी में रगड़ दी थी।* लेकिन वह एक दुर्द्धर्ष मुक्ति-योद्धा होने के साथ ही, शब्दों के वास्तविक अर्थों में, जनता के आदमी थे। उनके व्यक्तित्व की सादगी, पारदर्शिता और निश्छलता के उनके दुश्मन भी कायल थे। उनके व्यक्तित्व के यही गुण इन कविताओं में भी देखने को मिलते हैं। *यह सादगी और पारदर्शिता ही इन कविताओं की शक्ति है। हम अनुमान लगा सकते हैं कि अपने मूल क्लासिकी छन्द रूपों में ये कविताएँ और भी अधिक नैसर्गिक और प्रभावी होंगी।*

माओ त्से तुंग

आज माओ त्‍से-तुङ के देश की ही तरह हो ची मिन्ह के देश में भी समाजवाद पराजित हो चुका है। ''बाज़ार समाजवाद'' के नाम पर वहाँ भी मुक्त मण्डी की लहर चल रही है। लेकिन साम्राज्यवाद और देशी पूँजीवाद के कुकर्म इन देशों की आम जनता के दिलों में अपने इन महान नायकों के प्रति आज भी मौजूद प्यार एवं निष्ठा को ज्‍़यादा से ज्‍़यादा मज़बूत और गहरा बनाने का काम कर रहे हैं। आने वाले दिनों में, सर्वहारा क्रान्तियों का नया चक्र जब अक्टूबर क्रान्ति के नये संस्करण के सृजन का सूत्रपात करेगा तो एशिया के सम्भावित नये जागरण की उसमें पथप्रदर्शक भूमिका होगी, इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। और तब वियतनाम की जनता भी एक बार फिर हो ची मिन्ह के परचम को उठाकर आगे बढ़ चलेगी, यह तय है। पूँजीवाद के विश्व-कारागार में मुक्तिकामी जनता के सपने विपर्यय के अँधेरे में भी उसी जिजीविषा के साथ जीवित हैं, जिस जिजीविषा के चलते चीनी जेल में बन्दी हो ची मिन्ह के सपने अक्षय बने रहे।

हो ची मिन्ह की यह जेल डायरी अतीत की स्मृतियों के पुनर्जीवन के रूप में हमारे सामने है, इससे भविष्य-स्वप्नों के पुष्पन-पल्लवन के लिए पोषक तत्त्व अर्जित करना हमारा काम है।

कुओ मिन्ताङ सरकार द्वारा अगस्त, 1942 में अपनी चीन यात्रा के दौरान गिरफ़्तार कर लिये जाने के बाद, चीन की विभिन्न जेलों में लगभग एक वर्ष का समय असह्य यंत्राणाओं के बीच बिताते हुए हो ची मिन्ह ने एक फटी-पुरानी डायरी में ये कविताएँ लिखी थीं। चूँकि वियतनामी भाषा में कुछ भी लिखना जेल अधिकारियों के लिए सन्दिग्ध होता, इसलिए उन्होंने ये कविताएँ क्लासिकी चीनी भाषा में चतुष्पदियों और ताङ कविता के छन्दों का प्रयोग करते हुए लिखी थीं। अंग्रेज़ी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद करते हुए चतुष्पदियों और ताङ कविता के मूल छन्द एवं रूप का निर्वाह कठिन ही नहीं, बल्कि यांत्रिक और असम्भव भी था। इसलिए अनुवाद में काव्य पंक्तियों को तोड़कर छन्द मुक्त कविता के रूप में ढाल दिया गया है। परिकल्‍पना प्रकाशन, लखनऊ से प्रकाशित इन कविताओं का अनुवाद सत्‍यव्रत ने किया है।


कविताएं

काया है कारागृह में,
किन्तु अन्तरात्मा, कदापि नहीं
महान लक्ष्य की सिद्धि के लिए
जागृत हो उठने दो अन्तरात्मा को
सदा के लिए!



एक गुलाब खिलता है, और फिर म्लान पड़ जाता है।
यह खिलता है और मुरझा जाता है अलक्षित।
लेकिन इसकी मिठास
जेल की कोठरियों में फैल जाती है
हमारे भीतर
तिक्तता की गहन अनुभूति जगाती हुई।






जिङसी ज़ि‍ला जेल में प्रवेश करते हुए

नवागन्तुक का स्वागत करते हैं
जेल में पुराने अनुभवी;
ऊपर काले बादलों का
पीछा कर रहे हैं सफ़ेद बादल;
नीचे धरती पर
एक मुक्त मनुष्य को
ठहर जाना है
बन्दी बनकर।


दुष्कर है जीवन-पथ

दुर्गम दुरारोह पर्वतों
और गहरे तंग दर्रों की
यात्रा करने के बाद,
कैसे भला सोच सकता था मैं
कि सामना होगा
उससे भी बड़े ख़तरे का
मैदानों में?
पहाड़ों में बाघ से
बचा मैं अनाहत,
मैदान में मिला मनुष्यों से
और फेंक दिया गया
जेल में।



बाहर सड़क पर

सड़क पर
हम सीखते हैं
कठिनाइयों से परिचित होना
मुश्किल से पार होती है
एक चोटी
कि दूसरी सामने खड़ी हो जाती है।
लेकिन एक बार
हम पार कर लेते हैं
सबसे ऊँचा दर्रा,
एक नज़र में समेट लेती हैं
हमारी आँखें
दस हज़ार ली तक फैला विस्तार।


जेल में पति से मिलने उसका आना

सलाख़ों के इस ओर, पति है।
पत्नी खड़ी है उस पार।
इतने करीब, बस कुछ इंचों की दूरी पर;
फिर भी आकाश से धरती जितनी दूर।
उनकी आँखें बताने की कोशिश करती हैं,
ज़ुबान जो कह पाने में असमर्थ है।
एक शब्द फूटे,
इसके पहले ही आँसू बह निकलते हैं:
सचमुच, उनकी पीड़ा
चीर देती है तुम्हारा हृदय।


उनींदी रात

पहला... दूसरा... और फिर तीसरा गजर
बजता है और धीरे-धीरे शान्त हो जाता है।
बेचैन बदलता हूँ करवटें:
लगता है, नींद नहीं आयेगी।
चार का घण्टा बजता है... और फिर पाँच का...
जैसे ही बन्द की हैं मैंने अपनी आँखें,
मेरे सपनों को बेचैन करने लगा है
पंचकोणीय सितारा।*

( *वियतनाम के जनवादी गणराज्य के राष्ट्रीय झण्डे का रंग लाल है और इसके मध्य में पंचकोणीय सुनहरा सितारा अंकित है।)






वियतनाम में खलबली

(नान्निङ के अख़बारों में छपी ख़बर)

पराधीनता से श्रेयस्कर है मृत्यु!
गर्वोन्नत लहरा रहे हैं सर्वत्र मेरे देश में
जन-विद्रोह के झण्डे।
उफ़! कितना दुःखद है ऐसे समय में
बन्दी होना :
बेकल हूँ मैं मुक्त होने को
भागकर युद्ध में शामिल हो जाने के लिए!


सुबह का सूरज

जेल में घुस आता है सुबह का सूरज:
धुँआ छँट जाता है,
उड़ जाता है कोहरा।
परिवेश स्पन्दित हो उठता है सहसा
जीवन की साँसों से,
और मुस्कराहट खिल उठती है
हर क़ैदी के चेहरे पर।


''एक हज़ार कवियों का काव्य संकलन'' पढ़ते हुए

प्रकृति के सौन्दर्य के गीत गाना
पसन्द करते थे प्राचीन कविगण:
चाँद और फूलों के, बर्फ़ और हवा के,
धुन्ध के, पहाड़ियों और नदियों के।
लेकिन हमारे समय की माँग है
कि कविताओं में हों इस्पात के गीत
और कविगण हों
आक्रमण की अग्रिम पंक्तियों में।



साथ के क़ैदी की बाँसुरी

घर की याद में
एक बाँसुरी बिलखती है वार्ड में।
उभरता है उदास सुर
शोक भरी एक लय।
मीलों दूर,
घाटियों और जल-धाराओं के पार,
अनन्त उदासी में,
एक आकृति चढ़ती है
एक मीनार पर
टकटकी लगाये देखती हुई
सुदूर विस्तार में।


जुआ खेलना

आम लोग,
जो जुआ खेलते हैं,
आनन-फ़ानन में
कर लिये जाते हैं गिरफ़्तार।
एक बार कर दिये जायें
सलाख़ों के पीछे,
फिर वे जी भर के खेल सकते हैं।
और इसलिए क़ैदी जुआड़ी
अक्सर सुने जाते हैं
अफ़सोस के साथ कहते हुए:
''इस बेहद माकूल जगह का ख़याल
आखि़र पहले क्यों नहीं आया
हमारे ज़ेहन में?''
००

साभार: uniting working class

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