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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

06 अप्रैल, 2018


उग्र होते आन्दोलन और सोशल मीडिया पर हमारी जिम्मेदारी

माधव राठौड़


अलीबाबा के संस्थापक जेक मा  ने एक भाषण के दौरान कहा था कि सोशल मीडिया से आनेवाले समय में गृह युद्ध की स्थिति हो सकती है |यह बात उन्होंने शायद पूरे विश्व में हो रही घटनाओं के मद्देनजर कही होगी |हम अपने आसपास होने वाली घटनाओं पर निष्पक्ष रूप से दृष्टिपात करे तो पाएंगे पिछले कुछ वर्षो से हर जगह धर्म,जाति,देश खतरे में दिखाई दे रहा है ,असहिष्णुता बढ़ी हुई लग रही है |छोटी छोटी बातों को लेकर तनाब बढने पर कर्फ्यू जैसे हालात हो रहे है |हर रामनवमी पर ,मुहर्रम पर शहर की हर गली में तनाव बढ़ जाता है हम तो समावेशी संस्कृति वाले थे |

माधव राठौड़

अचानक ऐसा क्या हो गया कि पिछले कुछेक सालों में इतने उग्र हो गये हमारी हर अस्मिता खतरे में दिखाई देने लगी है | इसका अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि आजादी के बाद पहली बार अपने को अपने ही तरीके से अभिव्यक्त करने के मंच लोगों को मिले है| जिस पर कोई रोक टोक नहीं है |आप मनचाही बात लिख पढ़ सकते है उसे आगे शेयर कर सकते है |जैसे जैसे इंटरनेट की पहुँच गाँवो और सुदूर क्षेत्रों तक हुई है वहाँ के लोग भी इससे जुड़े हुए है |पहली बार व्यक्ति को लगने लगा है कि वो अपनी बात को विश्व के किसी भी कोने तक पहुंचा सकता है |इसलिए वो अपनी बात को बेबाकी से रख रहा है उसे अब परम्परागत मीडिया पर निर्भर नहीं रहना पड़ रहा है |उसके पास अपनी बात पहुचाने के लिए स्वयं का प्लेटफार्म है ,जिसके जरिये से वो कोई भी न्यूज़, फोटो और आँखों देखा लाइव विडियो तत्काल प्रसारित कर सकता है |
इंटरनेट की पहुंच आम आदमी तक बनी यह अच्छी बात रही मगर इसके जल्द दुरूपयोग भी सामने आने लगे |सोशल मीडिया की इस ताकत को जल्द ही सड़क छाप नेताओं ने ,समाज और धर्म के ठेकेदारों ने पहचान लिया |उन्होंने अपने हित साधने के लिए इसको कारगर हथियार समझा और साबित भी हो रहा है |
आजादी के बाद इमरजेंसी बड़ी घटना थी ,उसके बाद आर्थिक उदारीकरण और उसके बाद संचार क्रांति जिसने व्यापक स्तर पर जनमानस को प्रभावित किया |
राजनैतिक विचारक मानते है कि दबाव समूहआज के समय में  विश्व में अपने आप में एक बड़ी पार्टी है जिनका हरेक देश की राजनीति ,आर्थिक ,सामाजिक और सामरिक क्षेत्रों में बड़ा दखल है |
इन दबाव समूह में जाति और धर्म बड़ी भूमिका निभाते है क्योंकि जहाँ वोट बैंक की राजनीति होती है ,वहां इनकी महत्ता को अनदेखा नहीं किया जा सकता है |इसलिए इनका महत्व बढ़ा है |दूसरी तरफ प्रत्येक जाति और धर्म को लगने लगा है कि वो विकास की दौड़ में पिछड़ रहे है ,उनकी अस्मिता खतरे में है ,उनका धर्म संकट में है इसलिए जाति और धर्म के आधार पर लोग लामबंद हो रहे है |हर छोटे से मुद्दे को ठेकेदार लोग उससे जोड़कर दिखाते है | जिससे युवा भावुक होकर त्वरित रूप से बिना सोचे समझे सड़को पर उतर जाते है |और यह सब तेज गति से वायरल इस सोशल मीडिया की वजह से हो जाता है इसके लिए न तो ऑफिस खोलना पड़ता है न ही पदाधिकारी नियुक्त करने पड़ते है |सिर्फ फेक न्यूज़ और विडियो बनाकर या फिर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर इस तरह भावुकता का रंग दिया जाता है कि एक ही घंटे में वो खबर पूरे देशभर के फेसबुक और व्हात्सप्प पर पढ़ी जाने लगती है |सबसे बड़ी मजेदार बात इसकी सत्यता की जाँच के लिए न तो सेंसर है न कोई प्रेस आयोग ,वैसे भी भावुक लोग सत्यता  जानने की जहमत भी नहीं उठाते | सबसे दुखद तब  होता है जब समाज के उच्च शिक्षित लोग,अफसर और बुद्धिजीवी लोग उसको सही ठहराने के लिए लम्बी लम्बी पोस्ट लिखकर युवाओं को भावुक अपील करते है |
जिसका परिणाम होता है कि निर्दोष और अबोध बच्चो के दिमाग में संकीर्णता घर कर जाती है और बिना सोचे समझे अपने करियर को दांव पर  लगाकर  इन सेनाओं के मोहरे बन जाते है |यह तय है कि युवा ऊर्जा अच्छा मार्गदर्शन मिलने पर रचनात्मकता की तरफ जायेगी या फिर इसे विध्वंसता की और आसानी से धकेला जा सकता है |जहाँ तोड़ फोड़ ,उन्मादी नारे और सुनहरे सपने दिखाई देते है | इन सबको हम विश्व स्तर से लेकर पिछले दिनों हुए आंदोलनों में बाकायदा देख सकते है | हम जागरूक नागरिक होने की बजाय अपनी अपनी जाति,धर्म और देश के पाले में सिर नीचा किये हुए खड़े हो जाते है या फिर उनके पक्ष  में तर्क ढूढ़ कर उनका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष  सहयोग करते है |और वे अपनी दुकानें आसानी से चला देते है न तो उनको गोली लगती है न ही उनका माथा फूटता है न ही मुकदमा होता है |इसके उलट उनको पद मिलते है मंच,मालाएँ और माइक मिलते है |
यह चिंता किसी प्रदेश और देश विशेष तक सीमित नहीं है बल्कि वैश्विक स्तर पर इस तरह लामबंद होना जातीय जनसंहार धार्मिक उन्माद और विश्व युद्ध को न्योता देना जैसा लग रहा है | क्योकि आज हम ग्लोबल विलेज में जी रहे है उतरी कोरिया सीरिया इराक ईरान सूडान कहीं पर भी इस तरह टेंशन होती है तो हम इससे अछूते नहीं रह सकते परोक्ष प्रभाव हम पर पड़ता ही है |आज से सौ साल पहले हम पढ़े लिखे नहीं थे ,संसाधन नहीं थे तब भावना के आधार पर लड़ लिए पर आज पूरा विश्व एक गाँव बन गया ,सारा ज्ञान आपकी जेब में है आप सही गलत की पहचान कर सकते हो ,हर घटना की बारीकी से जाँच कर पता लगा सकते हो कि यह कहाँ से जनरेट हुई है |पूरा विश्व भाईचारे समानता और मानवता की बात कर रहा हो उस समय आप हिंसक होकर अपने राष्ट्र की सम्पतियों को जला रहे हो बच्चों और महिलाओं पर अत्याचार कर रहे हो ,सोशल मीडिया पर गाली गलोच और भडकाऊ बयान दे रहे हो |और इन सबका नतीजा यह हुआ कि आपकी इस आक्रमकता को देखते हुए हर जगह तथाकथित सेनाएँ,मंच और परिषद  खड़ी हो गई जो आपके मुहल्ले में दंगे करवा कर रही है ,दुकानें जलवा रही है |किसकी दुकान जली किसका सर फूटा किसका घर जला आपको होश ही नहीं |
हम इस कदर अनजान होकर इनका समर्थन करते रहेंगे तो आनेवाला समय ज्यादा भयावह होगा क्योंकि सोशल मीडिया के ऊपर नजर रखने वालो के हाथो में आपका सारा डेटा है आपको वही परोसा जा रहा है जो वे चाहते है इसलिए आपको वहां पर जाति ,धर्म, सेना और देश खतरे में ही नजर आयेगा वहां पर आपको असहिष्णुता इतनी दिखाई देगी कि आप देश छोड़ने का विचार करोगे| गली के मोड़ पर बैठे पंक्चर निकालने वाले अब्दुल चाचा और चाय वाले पंडित जी को भी शक से देखने लगोगे हालाँकि वहां ऐसा कुछ भी नहीं है |क्योंकि आपको जो परोसा जा रहा है, पढ़ाया जा रहा है वो एक सोची समझी साजिश के तहत ही आ रहा है और आप भावुक होकर अपने अच्छे दोस्त का कोलर पकड़ रहे हो उसको गलियाँ निकाल रहे हो |
इसलिए एक जागरूक नागरिक होने के नाते हमारा दायित्व बनता है कि इन विघटनकारी ,साम्प्रदायिक ,जातिय वैमनष्य फ़ैलाने वाले लोगों से युवा पीढ़ी को बचाने का |सोशल मीडिया हमारे जीवन को खूबबसुरत बनाने के लिए है ,ज्ञान में वृद्धि करने के लिए है, विचारों के आदान प्रदान करने के लिए है |डॉ कलाम के शब्दों में कहे तो इस ग्रह और ज्यादा रहने लायक बनाने में मददगार बनाने के लिए इसका उपयोग करे न कि तोड़फोड़ करने ,गाली गलोच करने दंगे और कर्फ्यू लगाने के लिए |इस दुनिया में हम दिनोदिन आरामदायक जीवन इसलिए जी रहे है क्योंकि पुरे विश्व के वैज्ञानिक,डॉक्टर,इंजनियर,टेक्नोक्रेट जी जान से लगे हुए है और इधर हम देश की सम्पति को तोड़ने और जलाने में लगे हुए है | सबसे ज्यादा जिम्मेदारी बुद्धिजीवी वर्ग पर है कि वो हरेक घटना की तहकीकात करने की युवाओं में आदत डाले न कि उनको बरगलाने की | क्योंकि युवाओ के आदर्श और प्रेरणा स्रोत आप लोग ही हो आप जो लिखोगे उसी आधार पर वे अपना मत बनायेंगे |सनद रहे कि यह जीवन प्रेम करने के लिए है न कि आपस में लड़ कर मरने के लिए |
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