image

सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

15 नवंबर, 2017

माधव महेश की कविताएं


माधव महेश: बलरामपुर में जन्मे युवा कवि माधव महेश लखनऊ में रहते हैं । एम सी ए किया है  और एक निजी संस्थान में काम करते है। और अभी-अभी लिखना-पढ़ना शुरू किया है। उनकी कविताएं ताज़ा ख़ुशबू और संवेदना से भरी हुई है। लखनऊ में होने वाली साहित्यिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है और अपनी समझ को समृद्ध करने का प्रयास करते है। उनका प्रयास उनकी रचनाओं में नज़र भी आ रहा है। इस युवा कवि की रचनाएं मंझे-मंझाए हुए पाठकों को थोड़ी कच्ची-पक्की लग सकती है। लेकिन उनकी पक्षधरता बहुत स्पष्ट है। हालांकि अभी कवि स्वयं को विचारक और कवि के बीच झूलता महसूस कर रहे है। उम्मीद करते है कि विचार के पानी में गूंथ-सांध कर कलात्मक और सामाजिक सरोकार से महकती कविताएं कहना सीख लेंगे। बहरहाल हम युवा कवि माधव महेश का हार्दिक स्वागत करते हैं और बिजूका के पाठकों की नज़र उनकी चंद कविताएं करते हैं।


कविताएं



एक

एक दिन
कोई कट्टरपंथी गिरोह
कत्ल कर
फेंक देगा मेरी लाश
सड़क किनारे

तब कुछ
कट्टरता के विरोधी
खड़े होंगे
मेरे कत्ल के खिलाफ
निकाल रहे होंगे जुलूस
उठा रहे होंगे सवाल मेरे कत्ल पर

हाँ ठीक तभी
मेरे कुछ मित्र
उड़ा रहे होंगे मेरा मजाक
बता रहे होंगे मुझे देशद्रोही
लगा रहे होंगे ठहाके
नास्तिक कहकर
००


दो

कब्र अपनी हम ही खोदेंगे
मनुष्य होने के नाते
ये हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है

इसी में दफन कर देंगे
अपने पितरों को
अपने नाती पोतों को

चूँकि हम इंसान हैं
हम ही मुखाग्नि देंगे
अपनी चिता को
जिसमें समाहित होंगे
हमारे अतीत की स्मृतियाँ
और भविष्य की झलकियाँ

हम गंगा में विसर्जित कर देंगे
अपनी ही लाश
जिसके साथ बह जाएगी
पूरी पृथ्वी
इसी में समा जाएंगे
चाँद , तारे और आकाश ।
००
अवधेश वाजपेई

तीन

समय के साथ
तुम्हारे चेहरे पर
उतर आयी हैं जीवन की पगडण्डियाँ

तुम्हारे थीसिस के पन्नों का भार
दीखता है तुम्हारे चश्मे में
और उसके पीछे
तुम्हारी आँखों से झांकता नीला आसमान
ऊँचा है या गहरा
थहाते हुए बैठा हूँ
मैं चुपचाप !

तुम्हारे चेहरे से झाँकता हुआ
मासूम बच्चा
सयाना दीखता है अब
हर बात पर खिलखिलाता नहीं
मुस्कुराता भर है
 
कितना कुछ बदल गया
कुछ ही दिनों में
हाँ पर तुम्हारे चेहरे में
नमक पहले जैसा ही है
और नहीं बदला है
तुम्हारे गले में पड़ा लाल धागा
जिसने मेरे मन को बाँधे रखा है।
००

चार

"वसुधैव कुटुम्बकम्ब"

मेरा घर
मेरी माँ
मेरा बेटा
००


K Thouki

पांच

अहिल्या !
सुना है भगवान राम ने तुम्हारा उद्धार किया था
पर तुम पत्थर की कैसे बन गई थी ?
मेरे पति ने श्राप दिया था
तुम्हारे पति ने !
क्यों ,क्या अपराध का था तुम्हारा ?
बलात्कार हुआ था मेरा
बलात्कार ! किसने किया था और अपराधी तुम कैसे ?
मेरा अपराध मेरा अपवित्र होना था ।
तुम्हारे देवराज इन्द्र ने किया था बलात्कार
देवराज इन्द्र ने !
पर एक बलात्कारी ( ऋषि पत्नी का) देवताओं का राजा कैसे हो सकता है ?
ये प्रश्न वेद का बखान करने वालों से पूछो ,
और उनसे जिन्होंने एक बलात्कारी को देवताओं का राजा बनाया ।
००

छः

क्या अब भी चलेगा
मेरा पेन कोरे कागज पर
करती नहीं तुम बातें
होती नहीं मुलाकातें
जब भी बढ़ाता हूँ कदम
नियति पीछे से आकर रोक लेती है
शायद तुम्हें पता नहीं
तुम्हारे ही नाम का संगीत
बजता है मेरे कानों में
तुम्हारी ही तस्वीर
चलती है मेरे ज़हन में
मेरा दिल तुम्हारे ही आकाश में कैद है
आजाद भी नहीं होना चाहता
कम्बख्त !
००


संपर्क:
माधव महेश
सम्पर्क -- 07398984765

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें