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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

18 दिसंबर, 2016

पंजाबी से अनूदित कहानी- इंसानियत, अनुवाद कीर्ति केसर

मित्रो आज पंजाबी से अनूदित कहानी- इंसानियत, पढ़ते हैं. इस कहानी का अनुवाद कीर्ति केसर जी ने किया है.

बलौच सिपाही मिल्टरी के ट्रक में मुर्गों की तरह लद गये थे। उनका सामान वैपन-कैरियर में सुबह भेज दिया गया था। हर फौजी के पास सिर्फ अपनी-अपनी बन्दूक थी। समय ही कुछ ऐसा था कि बन्दूकों पर संगीनें हर समय चढ़ी रहती थीं।

बलौच फौज़ियों की इस टुकड़ी का सरदार एक रमजान खान नाम का जमादार था, जिसे सभी 'मौलवी जी, मौलवी जी' कहते थे। चलती लारी में जमादार नमांज पढ़ने के लिए खड़े हो जाते। फसादों में लाशों के ढेर के आगे मुस्सला बिछाकर लोगों ने नमांज के समय उन्हें नमाज पढ़ते देखा था। एक सिपाही उनकी दायीं तरफ बन्दूक लेकर खड़ा होता और एक सिपाही उनकी बायीं तरफ। देश विभाजन के बाद अमृतसर क्षेत्र से मुसलमानों को निकाल-निकालकर वे पाकिस्तान भेजते। जली हुई मस्जिदों के सामने लारी रुकवाकर ये रोने लगते।

और अब उनका काम खत्म हो चुका था। कोई भी मुसलमान ऐसा नहीं रह गया था जिसे मौलवी ने पाकिस्तान की स्वर्ग-सी जमीन पर न भिजवा दिया हो। जो अपने घरबार छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे, उन्हें मौलवीजी इस्लामी राज्य के सुन्दर चित्र दिखाते और कोई भी उनका कहना टाल न पाता।

और आज अब लारी चलने लगी तो मौलवीजी को अचानक खयाल आया भगवान तो सभी का एक है। अमृतसर के हरिमन्दिर की नींव एक मुसलमान फकीर ने रखी थी, गुरु नानक को अहले-सुन्नत भी अपना पीर मानते हैं और मौलवीजी ने दूर गुरुद्वारे के चमकते हुए सुनहरे कलशों को देखकर सिर झुका दिया।

लारी चली तो ठंडी हवा के पहले झोंके साथ ही मौलवीजी की आंखें मुंदने लगीं। मौलवाजी की आंखें मुंदीं तो फसादों के वीभत्स दृश्य उनकी आंखों के सामने उभरने लगे। किस तरह मुसलमानों ने हिन्दू-सिखों के टुकड़े-टुकड़े किये थे और किस तरह हिन्दू-सिखों ने मुसलमानों से गिन-गिनकर बदले लिये थे। कोई कहतापहले हिन्दूओं ने की थी, कोई कहता मुसलमानों ने की थी...।

जमादार रमजान खान ऐसे ही खयालों में खोया हुआ था कि सड़क से एक खौंफनाक चीख के बाद ट्रक में सिपाहियों के हंसने की आवांज आयी। पूछने पर पता चला कि साइकिल पर जा रहे नौजवान सिख के पास से जब लारी गुजरी तो लारी के एक सिपाही ने अपनी संगीन से उसके गले को छलनी कर दिया। वह सिख साइकिल से उछलकर नाली में गिर पड़ा जैसे कोई मेंढक उछलकर गिरता है। इसी घटना पर सिपाही हंस रहे थे। जमादार भी सिख को मारने की इस तरकीब पर हंसने लगा। उसने सोचा चलो एक सिखड़ा और कम हुआ। और अपनी डायरी में दुश्मन के जानी नुकसान के ब्यौरे में उसने एक नम्बर और बढ़ा लिया।

ट्रक से हंसी अभी थमी नहीं थी कि सड़क से फिर एक भयानक चीख सुनाई दी। इस बार आवांज किसी औरत की थी। और लारी में कहकहों की आवांज और ऊंची हो गयी। दूध बेचकर गांव जा रही किसी ग्वालिन को इस बार निशाना बनाया गया था। संगीन की नोक ग्वालिन की चोटी मेंं जाकर लगी थी और उसके बालों की लट संगीन के साथ कट कर आ गयी थी और ग्वालिन का बर्तन एक तरफ गिर गया था और ग्वालिन दूसरी तरफ ढेर हो गयी थी। फिर बलौची सिपाही बारी-बारी से बालों की लट की चुमने लगे थे। जब सभी ने अरमान पूरे कर लिये तो जमादार ने बालों की लट लेकर अपनी डायरी में रख ली। काफिरों के मुल्क की यह निशानी भी अच्छी रहेगी, उसने मन-ही-मन सोचा।

सुबह की ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। अमृतसर शहर के बाहर सड़क पर कोई इक्का-दुक्का ही आ-जा रहा था। बलौच फौंजियों ने पाकिस्तान की शान में गीत गाने प्रारम्भ कर दिये पाकिस्तान आसमान में चमकता एक तारा हैपाकिस्तान दुनिया में इनसाफ का एक नमूना होगा पाकिस्तान गरीबों और अनाथों का सहारा होगापाकिस्तान में कोई जालिम होगा, न कोई मंजलूम...।

इसी तरह गाते-गाते एक सिपाही ट्रक में ड्राइवर के दाहिने आकर बैठ गया, दूसरा जमादार से इजांजत लेकर उनके बायीं और बैठ गया। और संगीनों को उन्होंने बाहर निकालकर रख लिया जैसे कोई शिकारी की घात में बैठा हुआ हो।

सड़क पर फिर एक औरत नंजर आयी, गले में गातरे वाली कृपाण, कोई सिख नंजर आ रही थी। ड्राइवर ने धीरे-से ट्रक को उसके पास से निकाला और उसके दायीं ओर बैठे बलौच सिपाही ने उस गोल-मटोल गुरु की भक्तिन को जैसे नेजे पर उछाल दिया हो। सुनसान सड़क पर फिर एक चीख सुनाई दी। ट्रक में फिर कहकहे उठे। ड्राइवर ने फिर ट्रक को तेज कर लिया।

और जहां जाकर वह औंधी गिरी, दूर तक सिपाही एड़ियां उठाकर उसे तड़फते हुए देखते रहे।

फिर उसके सम्बन्ध में बातें होने लगीं। कोई कहता गुरुद्वारे से आ रही थी तो दूसरा कहता गुरुद्वारे जा रही थी। कुछ का खयाल था कि खा-पीकर मोटी हो रहीथी।

और जमादार को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी डायरी में दुश्मनों के जानी नुकसान के हिसाब में एक औरत लिखे या एक औरत और एक बच्चा। कोई एक मील बाद एक बूढ़ा सडक के किनारे बैठा पेशाब कर रहा था। लारी फिर सड़क छोड़कर कच्चे रास्ते पर आ गयी। इस बार जमादार के बायीं ओर बैठे सिपाही ने बूढ़े की पीठ में संगीन को गाढ़ दिया। बूढ़ा गेंद-सा लुढ़कता खाई में गिर गया। फिर एक चीख की आवांज और फिर कहकहे। लारी फिर तेज हो गयी।

जमादार रमजान खान ने सोचा जाते-जाते ये अच्छे शिकार मिल गये। वह बार-बार डायरी खोलता और अपने हिसाब को अप-टू-डेट करता।

शहर से जैसे-जैसे वे दूर होते जा रहे थे, वैसे-वैसे खतरा कम होता जा रहा था। बलौच सिपाहियों के हौसले बढ़ते जा रहे थे और उन्हें इस नए खेल में मजा आ रहा था।

हवा से बातें करता मिल्टरी का ट्रक जैसे उड़ता जा रहा था। सामने सीमा पर पाकिस्तानी झंडा दिखाई देने लगा था। बलौच सिपाहियों ने झंडे को देखते ही'पाकिस्तान जिन्दाबाद' के पांच नारे लगाये और फिर कोई नगमा गाने लगे।

झंडा जरूर नंजर आने लगा था, पर सरहद अभी लगभग तीन मील दूर थी।

थोड़ा ही आगे जाकर बलौच सिपाहियों ने देखा कि तीन सिख सड़क पर जा रहे थे, दो-दो दायीं ओर तथा एक बायीं और। तीनों में कोई पचास-पचास कदमों का अन्तर था।

ड्राइवर के पास अगली सीट पर बैठे बलौच सिपाहियों ने आंखों-आंखों से कोई योजना बनायी। और जब सारा नक्शा इशारों-इशारों से सभी की समझ में आ गया तो तीनों मुस्करा पढ़े।

फिर ड्राइवर ने ट्रक को दायीं और कच्चे रास्ते पर डाल दिया। अगले ही क्षण एक नौजवान सिख संगीन की नोक से बिंध गया। ट्रक तेज हो गया। नौजवान की चीख सुनकर उसी ओर जा रही औरत ने हैरानी और घबराहट से पीछे मुड़कर देखा। ट्रक उस समय तक उसके सिर पर पहुंच चुका था और तेजी से बाहर आती संगीन उसकी छाती में गढ़ गयी। ट्रक और तेज हो गया। अब बायीं ओर जा रहे बूढ़े की बारी थी। बूढ़ा जैसे ऊंचा सुनता हो, उसे कुछ भी सुनाई नहीं दिया था। ड्राइवर बड़े साहस से ट्रक को सड़क पर ले आया और फिर बायीं ओर कच्चे रास्ते पर डाल दिया और पूरी रंफ्तार के साथ ट्रक को बूढे क़े पास से निकाला। बूढ़ा भूखा-प्यासा कोई शरणार्थी लग रहा था। संगीन की नोंक चुभते ही उछला और पहिये के आगे जा गिरा। उसकी खोपड़ी ट्रक के भारी पहियों के नीचे कुचल गयी। ड्राइवर ने ट्रक को और तेज कर दिया।

सामने दिख रहा पाकिस्तान का धर्म, सच और न्याय का प्रतीक चांद-तारे वाला झंडा लहरा रहा था। ड्राइवर ने ट्रक को और तेज कर दिया। अपने देश से आ रही प्यार-भरी तेज हवाएं जैसे बलौच सिपाहियों का स्वागत कर रही थीं और एक नशे में बलौच सिपाही 'अल्लाह हू अकबर' और 'पाकिस्तान जिन्दाबाद' के नारे लगा रहे थे।

सिपाही नारे लगाते जा रहे थे, ड्राइवर ट्रक की रंफ्तार को बढ़ाता जा रहा था। तभी ड्राइवर ने देखा कि अचानक एक जंगली बिल्ली कूद कर सड़क के बीच में आ गयी। ड्राइवर ने बिल्ली को देखा, जमादार ने भी बिल्ली को देखा। ''इनसानियत का तकाजा...'' इस तरह हुक्म उसके मुंह में ही था कि ड्राइवर ने खुद ही ट्रक को एक तरफ करते हुए बिल्ली को बचाने की कोशिश की। बिल्ली तो बच गयी, पर इतनी तेज जा रहे ट्रक कर हैंडल मुड़ा तो फिर सम्भाल न सका। ट्रक कच्चे रास्ते पर आ गया, फिर कच्चे रास्ते से उतर कर एक पेड़ से टकराकर उलट गया। ट्रक ने एक करवट ली, फिर दूसरी।

पच्चीस मिली-जुली चीखें निकलीं। और फिर जैसे सभी के गले पकड़ लिए गयें हों, एकदम सन्नाटा छा गया। इंजन के पेट्रोल से ट्रक को आग लग गयी। सड़क पर कोई भी हिंदुस्तानी नहीं था जो बलौच सिपाहियों की मदद के लिए पहुंचता।

दूर दिख रहा पाकिस्तान का झंडा वैसे ही लहरा रहा था। घबराहट में सड़क के किनारे कीकर के पेड़ पर बिल्ली चढ़ गयी थी और वहीं से का/टों में से आ/खें फाडे ज़ल रहे ट्रक को देख रही थी और हैरानी हो रही थी।
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टिप्पणियाँ:-

सिनीवाली:-
इंसानों की जान की कीमत बिल्ली की जान के आगे कुछ भी नहीं, अच्छी कहानी

डॉ शमां खान:-
मन को उद्वेलित करती,एक संदेश देती कहानी।
यूँ ना नसीब लिख तू खुद तकदीर का
जिस धड़ी तेरा दीदार हो तेरा भी
होगा तू स्याह औ बेपर्दा

अनूप सेठी:-
कहानी के वर्णन बहुत ही प्रकृत यथार्थ वाद जैसे लगते हैं जो किंचित वीभत्सता भी पैदा करते हैं ।  बिल्ली को बचाने की इंसानियत की बात एक भारी विडंबना का निर्माण करती है। लेकिन दुर्घटना में सारे बलोच सिपाहियों का मारा जाना कहानी का भाग्यवादी सा अंत कर देती है।

रेणुका:-
कहानी एक कड़वे सच्च को दर्शाती है। किंतु काफी जगह क्रूरता का विस्तृत वर्णन परेशान करता है।

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