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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

16 अगस्त, 2016

कविताएं : डॉ राजवंती मान

आज आप सभी के लिए प्रस्तुत है एक रचनाकार की कुछ रचनाएँ ।

पढ़कर अपने विचार अवश्य रखें ।

1."इस अग्निपथ पर"

इस अग्निपथ पर 
चलते चलते 
पहुँच गई
स्याह कन्दराओं में ।
अंधेरों  की दुर्दांत मल्लिकाऐं
बैठ गई पैर जमा कर 
छाती पर 
भर कर कालिख मुझ में 
क्लेश और  अशांति ।

सूरज उतर जाता है 
सर पर पैर रख कर 
सख्त चट्टानों से झांकते 
भूतैहा चेहरे 
ना गति  ना भाषा इनकी ।

क्या पता था
सफर अग्निपथ  का
लेकिन जाएगा ज्वालागृह तक 
लावा सा बहेगा मुझ में 
जम जाएगा भीतर भीतर 
उग आएंगी चट्टानें
संगमरमर जैसी मुझ में

बनेगा एक ताजमहल 
प्रेम  लौ जगाए
पाऐंगे विश्राम जहाँ 
थके पखेरू कुछ पल को !

2."विप्लव"

हे भास्कर! 
पहाड़ों की चोटियों से 
अवतरित हो तुम 
आदमकद खिड़कियों, 
छतों पर झांको 
उस से पूर्व 
भर लूं तुम्हें 
दोनों हाथों की अंजुलि में 
रोक लूं कुछ पल 
थोड़ा सा प्रकाश पुंज 
और 
छोड़ दूँ एक पहर के लिए 
अट्टालिकाओं के पार्श्व में 
सरकण्डों के घरोंदों में 
मिट्टी के सीले फर्श पर

कि
वो बच्चे 
कांपते ठिठुरन से 
रात्रि भर से प्रतीक्षा में 
पेट की अग्नि जांघों में भींचे 
दुबके पड़े हैं

मगर 
तुम पहाड़ों को लांघ 
जा बैठते हो अटारियों के शिखर पर 
और फिर उतर जाते हो तैरकर 
संतरी ढलानों के बिछौनों पर 
सो जाते हो सांवले बादलों की गोद में बाँध कर अपनी नाव 
जैसे बांधी थी पिछली शाम 
और रह जाती है
उधर 
एक निष्ठुर सांझ 
विप्लव करती!

3."मेरा नाम"

मेरा नाम 
इतने अक्षरों का समुच्चय
मानों चुनौती देता हो 
सत्ता को
नजर डालो तो उलझ कर रह जाए
बड़ा भी 
और 
बोझिल भी 
इसलिए खीझ  बैठे हुजूर !

उन्हें पसन्द है 
अंगूठे के काले धब्बे  से निकला
बस , छोटा सा नाम 
कागज के एक किनारे पर रेंगता
सिमटा
मौन सा ।

इसलिए लगा दिए क्रास 
हर जगह 
मेरे नाम  के  आगे 
रोक दिए  रास्ते

उन्हें पसन्द नहीं 
मेरे भीतर अक्षरों का करवटें लेना 
हमें पसन्द नहीं 
सिफर हो जाना !!

  परिचय 

डॉ राजवंती मान

लेखिका और शोधकर्ता। 

जन्म :हरियाणा के रोहतक जिले के  गाँव रूड़की में ।
किसान व  सैन्य पृष्ठभूमि ।
हरियाणा सरकार के अभिलेखागार विभाग में उप निदेशक के पद पर कार्यरत ।
इतिहास और साहित्य में रुचि।
मुख्य पुस्तके:

1)चंद्रशेखर आजाद :विवेकशील क्रान्तिकारी

2)राजा नाहर सिंह और 1857 की जनक्रांति 

3 )Hanging of Bhagat Singh
Tribunal proceedings. .two vols. 

4)Social Radicalism in Urdu literature 1930-1960

5)   बबूल की छांव (गजल संग्रह)

6) परिन्दे की आरजू (काव्य संग्रह ) ...under publishing process with Grant from Chandigarh Sahitya Academy 
Awards:Urdu tarzuma nigar award 2012 by Haryana Urdu Academy

प्रस्तुति-बिजूका समूह

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