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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

11 मार्च, 2016

कविता : सीमा सक्सेना

आज प्रस्तुत है समूह के साथी की कुछ रचनाएं। पढ़ कर टिप्पणी अवश्य कीजिएगा।

1. मन को छू जाये

न जाने कब क्या मन को छू जाये
तन मन को पुलकित कर जाये
रोम रोम में समां जाये सिहरन
होठों पर स्मित रेखा खिंच जाए
हवाओं में हो कुछ नया सा सुरूर
मौसम बदला बदला नज़र आये
चिड़ियों के चहकने से बज उठे जलतरंग
मन का मयूर नाच नाच जाये
सागर की धीरता हो जाये उच्श्रंखल
मन नदिया बन उफना उफना आये
बिजली चमके बादल गरज कर बरसे
मन की धरा भी अंकुरा आये
फुहारों से भिगो कर तन मन
सीधे तुम दिल में उतर आये
न जाने कब क्या मन को छू जाये
तुम्हारा प्यार ही जीने का भ्रम बन जाए
जीने का भ्रम बन जाए !!

2. प्रेम में होना

प्रेम में होना या प्रेम करना
कह देने भर से नही होता
प्रेम तो बसता है यादों में
जो पल पल टीसता है
दर्द में बसता है प्रेम

एक ख्वाब जैसा होता है प्रेम
जिसे पाया नही जाता
खोकर पाया जाता है
इसे जीता नही जाता
हारकर जीता जाता है
त्याग में होता है प्रेम

समर्पण नही मांगता
समर्पित होकर पाया जाता है
कुछ पल का नही 
युगों तक साथ निभाता है 
अमर होता है प्रेम
हर दिल में जीवित रहता है

क्यूंकि आदि, इति,
स्वार्थ, झूठ में नही
सच्चाई में बसता है प्रेम
महसूस करके देखिये
किसी को प्रेम से
अपना बना कर तो देखिये
प्रेम तो सिर्फ प्रेम में होता है
सिर्फ प्रेम में !!!

3. मौन

ये मौन बहुत बातें करता है
कितना वाचाल हो उठा है आजकल
बोलता रहता है अंतर्मन से
हर समय
दुनियां ज़हान की बातें
करता रहता है
नीले आकाश में उड़ती
वह चिड़िया भी ठिठक गयी देखो
कुछ पल को
हमारी बातें सुनने को
बेचारी नही समझ पाती हमारी भाषा
न हमारे मन को
फिर करने लगती आकाश से बातें
और मै तुमसे
हाँ तुम ही तो समझ सकते हो
तुम से तो जुड़े है मन के तार
चलता रहता है निरंतर
वार्तालाप
देखो कैसे मुखर हो उठा है मौन 
मौन होकर भी मौन नही है !!

4. इतना प्यारा

कोई क्यों इतना प्यारा लगता है
अपनी जान से भी ज्यादा
क्यों मन में समाँ जाता है
जैसे दरियां में नदी 
और झरने नदियों में
पर्वत श्रंखलायें सर उठाए ख़ड़ी है
पेड़ों की शाखों पर चिड़ियों ने
घोंसले बना लिए हैं
मन्दिर में प्रार्थनाएं होने लगी हैं
घंटों की धुन के साथ आरती हो रही है
ये मन क्यों डोल उठा
उसकी डांट में भी प्यार नज़र आने लगा
हर बात में हर जगह
तेरी छवि है
मुस्कुराती हुई
बोलती हुई सुनती हुई
मन में तरंगित होती हैं ध्वनियाँ
चाँद भी निकल आया है
देखो ये तुम हो
पर चाँदनी इसे साथ क्यों लाये
ये क्यों है तुम्हारे साथ
जाओ इससे अच्छा तो तुम
बादलों की ओट में छिप जाओ
मैं इंतज़ार कर लुंगी तुम्हारा
झेल लुंगी विरह, तड़प
उसमें तुम मेरे साथ तो होगे
जहाँ होंगे सिर्फ हम और तुम साथ साथ !!

5. अँधेरी रात में 
चाँद के इन्तजार में 
मेरी पलकों के किनारे 
गीले हो जाते है 
यादों की स्मिर्तियाँ 
झिलमिला उठती हैं 
आकुल हो उठती हूँ 
कोमल याद  
चुभन पैदा कर देती है 
इस अँधेरी रात में भी 
सिमट आता है 
चाँद का सौन्दर्य 
मेरी आँखों में 
और मेरे मन में 
तुम्हारा प्यार 
किसी साज़ के तार सा 
झनझनाता हुआ !!

6.  तुम आओगे 
जब कभी तुम आओगे 
तब दिखाउंगी तुम्हें 
वे सब चीजें 
जिन में खोजती थी तुम्हें 
वे रातें तो वापस नही आ सकती 
लेकिन उनकी यादें 
जो मैंने सहेज रक्खी हैं 
तकिये के गीलेपन में 
बिस्तर की चादर पर 
बदलता है सबकुछ धीरे से 
हो जाता आडम्बर हीन और आदिम 
मेरा घने जंगल में 
तब्दील हो जाने से पहले 
आ जाओ न तुम 
एक बार !!

7.  बुनती रहती है 
वो सदियों से बुनती आई है 
बुनती रहती है 
बुनती रहेगी 
आजन्म 
डूबकर 
उलझा देती हैं जब उलझने
सुलझाती रहती उन्हें 
दिल से  
चाहते हैं वे उलझी रहे 
सुलझाने में 
पागल सी 
फँसी रहे
आखो में भरे आंसुओं के बीच भी   
वह समझ चुकी है 
सुलझन निकल ही जाती है 
अगर शिद्दत से निकली जाये !!

8.  उदास नज़्म

जब कभी उकेर लेती हूँ तुम्हे 
अपनी नज्मों में !

आसुओं से भीगे 
गीले, अधसूखे शब्दों से !!

सूख जायेंगी गर कभी  
वे उदास नज़्मे!
सबसे पहले सुनाउंगी 
या दिखाउंगी !! 
सच में गीली है 
अभी तो !
वाकई बहुत भीगी भीगी सी !!

9.  गलतफहमियां
पढ़ लेते गर मन, कभी तन से परे जाकर 
तो न आती मन में इतनी गलतफहमियां 
खुद ही पैदा की, सवाल किये खुद खोजे 
जवाब, दूर कैसे होती भला गलतफहमियां 
नहीं चाहती हो दुःख तुम्हें कोई, पी लिया 
सारा गरल अकेले, जैसे चाहो लोसब भेद 
समझते अगर पूर्ण समर्पण ही होता प्रेम 
शायद न लाते मन में इतनी गलतफहमियां....

प्रस्तुति -रचना 
रचनाकार परिचय

नाम _ सीमा सक्सेना
लेखकीय नाम _   सीमा ‘असीम’ सक्सेना
शिक्षा_ एम.ए. संस्कृत( रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय,बरेली)  
अन्य_ लघु शोध पत्र एवं“कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कोर्स ”
सम्मान _       सारस्वत सम्मान, विशिष्ट सरस्वती रत्न सम्मान
सम्प्रति _      आल इंडिया रेडियो , अनाउन्सर
संपर्क _ २०८ डी , कॉलेज रोड ,निकट रोडवेज, बरेली -243001
फ़ोन _ 09458606469, 09557929365
ईमेल _seema4094@gmail.com
सृजन _ कविता, ग़ज़ल, मुक्तक, कहानी, लेख आदि
प्रकाशन_ एक काव्य संग्रह ‘ये मेरा आसमां’ व एक कहानी
संग्रह “लिव लाइफ” प्रकाशितदो किताबें प्रकाशक के पास प्रकाशनार्थ साथ ही अनेकों संग्रह में रचनाओं काप्रकाशित होना !
  कथादेश, कथाक्रम, परिकथा, कादम्बिनी, दैनिक जागरण, अमर उजाला, लहक, समाज कल्याण,मधुराक्षर, करुणावती साहित्यधारा आदि अनेकों साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएँ प्रकाशित ।
आकाशवाणी, दूरदर्शन पर कविता कहानी व परिचर्चा आदि में शामिल होना वसाहित्यिक गोष्ठियों मेंसहभागिता, हिंदी कविता कोश में रचनाएँ प्रकाशित।
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टिप्पणियाँ:-

गणेश जोशी:-
सीमा जी की कविताएं मीठी-मीठी यादें, बेबसी, उदासी और गलतफहमी को दर्शाती हैं। वाकई कविताएँ दिल में उतरती हैं।

संतोष श्रीवास्तव:-
सीमा जी की कविताएं नारी मन से जुड़ी तमाम भावनाओं को शब्दों में पिरोकर प्रस्तुत करती है। बहुत ही मार्मिक, बहुत ही उद्वेलित करने वाली, बेबाक और सुंदर कविताओं के लिए सीमा जी को बहुत-बहुत बधाई। आभार एडमिन जी

सीमा व्यास:-
प्रेम सदैव प्रशंसित होता है । सीमा जी की प्रेम पगी कविताएं मन को छूती हैं । हो सकता है,  कई पाठकों को पढ़ते पढ़ते अपने मन की बात लगे ।

फ़रहत अली खान:-
सरल-सहज-सहल भाषा में अच्छी कविताएँ कही हैं सीमा जी ने।
'प्रेम में होना', 'मौन', 'तुम आओगे' ख़ासतौर पर पसंद आयीं।
बधाई।

परमेश्वर फुंकवाल:-
यदि ये आरंभिक कविताएँ हैं तो इतना कहा जाना आवश्यक समझता हूँ कि बेहतरी के लिए अच्छा समकालीन साहित्य खूब पढें। इस समूह पर यह प्रचुरता में है। सादर।

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