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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

19 नवंबर, 2015

कविता : ब्रजेश कानूनगो

प्रस्तुत है समूह के साथी की कुछ कविताएं। कविताएँ पढें और जो भाव आते हैं उन्हें यहाँ लिखें जिससे कवि/ कवयित्री को भी आपके विचारो का पता चले।

प्रेम की कुछ कविताएँ

000 चाँद के टुकड़े
 

शरमा रही है दूब कुछ ऐसे

अभी छूकर गया कोई जैसे

 

ओस पर लिख गया है अपना नाम

यह वही लिपि है शायद  

जिसमें लिखी जाती धड़कनों की भाषा

शब्दों के अर्थ सामनें हैं बे-आवाज

एक राग सुनाई देता है गुम्बद की हवा में   

घंटियों की गूँज पर सवार उड़ गई

कोई चिड़िया अभी-अभी 

आईना था चांदनी का जलाशय  

एक फल आ गिरा अचानक शहद भरा

थिरकने लगे चाँद के टुकड़े

तरंगों की कमर में बाँहें डाले.

०००

000 खाता बही में प्रेम
 

चांदनी में नहाए

किसी ख़ूबसूरत लम्हे में  

लाड में आकर तुम कहीं पूछ बैठो  

कितना प्यार मिला जीवन में ?

तो क्या कहूंगा मैं !

दुनियादारी के खाता-बही में

आधी सदी तक प्रविष्टियों के उपरांत  

कभी प्यार का कोई रिकार्ड नहीं संजोया बेशक

मगर जो मन की एक किताब है उसमें

हर पन्ने पर सबसे पहले

स्वतः दर्ज हो जाता है तुम्हारा प्रेम

इतनी बड़ी हो गयी है पूंजी  

कि बही-खाते की रेखाओं से बाहर निकल रहे हैं आंकड़े

समुद्र के आयतन से कुछ अधिक हो गया है उसका मान

धरती के घनत्व से ज्यादा सघन है यह अर्जित प्रेम

संभव ही नहीं शायद

तुम्हारे प्रेम का हिसाब रखना

आकाश जितने अगले पन्ने पर

दर्ज नहीं हो पा रहा मुझसे पिछला बाकी.

०००

000 प्रेम में गणित
 

सवालों को हल करते हुए

जो बीज गिर जाता है बीच में

वह गणित नहीं है

नीली स्याही में इन्द्रधनुष खिलता है कागज़ पर

अंकों के पीछे नहीं

आगे लगते हैं शून्य

शून्य का मान शून्य से भी हल्का

जैसे फूल की पँखुरी 

सुनसान किनारे तक जाकर ठहर जाती हैं रेखाएँ

त्रिभुज में रूपांतरित होने लगते हैं आयत

त्रिभुज तो जैसे दिल में बदल जाने को बैचेन बैठे होते हैं

आकृतियों को गुलाबी होने में देर नहीं लगती बिलकुल
 

संतूर की तरह बजता है गणित

प्रेम के राग में. 

०००

000 पांच हजार शामों वाली लड़की
 

ज्येष्ठ की तपन भी

साँझ की बयार में बदल जाती है
दोपहर को जब चली आती है
पांच हजार शामों वाली लड़की.
 

रात तो फिर रात ही है. 

न जाने कितनी सदियों से 
दुनिया के अँधेरे से लड़ते हुए

प्रेयसी कहें पत्नी कहें या माँ कह लें
बहन या बेटी होकर भी यही करती रही

कहीं और जाकर भी 
दिया जलाती रही

रोशनी से जगमग करती रही सबका संसार 
पांच हजार शामों वाली लड़की.
 

यूँ तो बहुत हैं जमाने में 
खैर खबर लेने वाले 
जब रात को अकड़ जाती है कमर 
पांच हजार दोस्त नही
वही होती है चिंतित 
पांच हजार शामों वाली लड़की.

रहस्य ही है अब तक

पांच हजार हमारी शामों को

ख़ूबसूरत बनाती लड़की के दुःख

ख़त्म नहीं होते

पांच हजार नई सुबहों के बाद भी.

000 प्रेम कविता का मौसम

ऊब, तपन और थकान से भरे

मौसम में भी  

प्रेम कविता ठंडक देती है 

ऐसा नहीं है कि गर्मियों में पिघलकर

रूह-अफजा में तब्दील हो जाती है कविता   

प्रेम की बात हो तो हर मौसम

बसंत में बदल जाता है

ज्यादा अर्थ नहीं रखता

मौसमों का विभाजन

प्रेम कविता में डूबे व्यक्ति के लिए  

चार कहें पांच कहें

या छः निर्धारित कर लें इनकी संख्या

एक ही होता है केवल ’प्रेम का मौसम’ 

सारे विशेषण जैसे प्रेम का पर्याय कवि के लिए.

 
ज्यादा से ज्यादा

इतना होता है सुविधा के लिए

कि मौसम दो ऋतुओं में बंट जाते हैं

कुछ महीनें मिलन के

और थोड़े से वियोग के समझ लीजिये
 

गौर करें आप

कि वेदना में सींचता है कविता की जमीन आंसुओं से

और जब आती है मिलन ऋतु

खूब लेता है कवि फूलों का मजा   

यह वही मौसम है कमबख्त   
जो पसीने की तरह रिसता रहता है देह से  

भिगोता है बरसात में तन-मन

फूलों की तरह खिलता है

और खुशबू की तरह बिखर जाता है

प्रेम कविता में.

000 ब्रजेश कानूनगो
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टिप्पणियाँ:-
 
राजेन्द्र श्रीवास्तव:-
आज आतंक के साये में जब सारा विश्व व्यथित है, ऐसे में ये कविताएँ माकूल जवाब हैं नफरत और अलगाव का। इन्हें पढ़ना सुखद है। बहुत सुंदर और मीठी कविताएं।
डॉ. राजेन्द्र श्रीवास्तव, पुणे

परमेश्वर फुंकवल:-
पहली कविता में कई नये बिंब हैं।पांच हजार शाम बहुत अच्छी लगी पर मुझे पांच हजार का आशय साफ नहीं हो पाया, कवि कुछ प्रकाश डालें तो उचित होगा।

किसलय पांचोली:-
त्रिभुज में रूपांतरित होने लगते हैं आयत-----
प्रेम की बात हो तो हर मौसम बसंत में बदल जाता है  ------
ये पंक्तियाँ अच्छी लगीं।

स्वाति श्रोत्रि:-
बहुत दिनों बाद ताजगी भरी प्रेमकविताये पढ़ने से मन भी झूम उठा। सुंदर कविताये पढ़वाने के लिए साधुवाद और कवि को  बधाई

नंदकिशोर बर्वे :-
पाँच हजार शामों वाली लड़की। एक अलग बिंब। अलग कल्पना। सचमुच बेहतरीन कविताएं। कलमकार को फ

मनीषा जैन :-
कविताओं में नयापन सा है। ये कविताएँ रक्त रंजित समय में कुछ आशा व प्रेम का एक झोंका दे जाती है लेकिन जिज्ञासा रहेगी कि पाँच हजार शमों वाली लड़की के बिम्ब का कुछ खुलासा होगा।

फ़रहत अली खान:-
सभी कविताएँ एक से बढ़कर एक हैं और प्रभावित करती हैं.                 
कवि/कवयित्री की कल्पनाएँ दूर तक पहुँच रखती हैं, काफ़ी नयापन भी नज़र आया; ख़ासतौर पर गणित, खाते आदि का बढ़िया प्रयोग किया गया है।

फ़रहत अली खान:-
अगर गणितीय आधार पर देखा जाए तो रोज़ एक शाम होती है;
तो कुल मिलाकर साल भर में 365 शामें,
और इस तरह 3 साल में लगभग 1000 शामें;
यानी 5000 शामों का मतलब हुआ लगभग 15 साल का अरसा।

मुझे तो 15 साल लंबा कोई मामला लगता है।��

फ़रहत अली खान:-
वैसे कविताओं में सामान्य विज्ञान, गणित और सामाजिक विज्ञान के सामान्य तथ्यों का इस्तेमाल करके उन्हें रोचक बनाया जा सकता है; ऐसा करने से कई बार वो अधिक तर्क-संगत भी हो जाती हैं।
कल साझा की गयी कविताएँ इस बात की वज़ाहत करती नज़र भी आ रही हैं।

ब्रजेश कानूनगो:-
प्रेम कविताओं पर अपनी बात

मेरी कुछ प्रेम कविताएँ ‘बिजुका’ समूह पर प्रसारित करने के लिए मैं एडमिन मंडल का आभारी हूँ. दरअसल कई बार कार्यशालाओं में समकालीन कविता और रचना प्रक्रिया पर बातचीत करते समय शिल्प,भाषा, बिम्ब, कथ्य,ध्वनि, आतंरिक लय आदि समझाने के लिए उदाहरण देते हुए मुझे लगता है कि जब तक मैं स्वयं इस पर काम करके देख नहीं लेता  ,संतुष्टि नहीं हो सकती.
वाट्स एप सुविधा के तहत एक रचनात्मक समूह में कविता कार्यशाला संचालित करने के प्रयास हुए हैं. इन कविताओं में से कुछ के पहले ड्राफ्ट वहीं बने हैं. बाद में इनका विकास होता गया,संशोधन की गुंजाइश तो संग्रह के प्रकाशन के बाद तक बनी ही रहती है. उस समूह में प्रतिदिन कोइ एक विषय पर साथियों को कविता लिखना होता है. बाद में हम उसका शीर्षक अलग रख सकते हैं जो अंत में उसके तेवर और अनुभूति पर निर्भर करता है.

मैं गणित का विद्यार्थी रहा हूँ,इसलिए गणित पढ़ते समय महसूस की तत्कालीन अनुभूतियों को कविता में उतारने का प्रयास किया है. (प्रेम में गणित)

वयस्क प्रेम की भावनाओं में डूबते-उतराते ‘पांच हजार शामों वाली’ से मुठभेड़ हुई है. ‘पांच हजार शामों वाली लड़की’ शीर्षक मिलने पर मुझे भी बहुत जिज्ञासा हुई कि आखिर यह है कौन ? क्या इसके पीछे कोइ दन्त कथा या कोई सन्दर्भ तो नहीं, अन्यथा कविता में उसके साथ अन्याय की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. मैंने भी समूह के एडमिन से जानना चाहा था. मगर ऐसा कुछ नहीं था तब मैंने स्वयं कल्पना की कि यदि अपने जीवन साथी के साथ 5000 शामें गुजार लेता है याने दाम्पत्य के लगभग नौ/दस परिपक्व साल, तब वह कैसी कविता लिखेगा. यह लड़की कोई और नहीं भरपूर प्रेम करती जीवन संगिनी है जिसकी उपस्थिति ( कई शामों सी शीतल और मधुर और ख़ूबसूरत) हमारा जीवन जगमगा उठता है. कविता के पाठक के कई अपने अलग-अलग पाठ भी हो सकते हैं.
 
भरपूर जीवन जी लेने वाले वरिष्ठ मनुष्य की कविता है ‘खाता-बही में प्रेम’.लगभग 35 वर्षों तक आर्थ-जगत (बैंक) में काम करने के बाद जीवन की अर्धायु में अर्जित प्रेम को भी किसी बही-खाते में दर्ज करने की असफल कशिश का नतीजा है ’खाता बही में प्रेम’ कविता. इस संवेदना को इस परिपक्व उम्र में जी कर ही समझा जा सकता है शायद.

चांदनी रात में तालाब के किनारे निर्जन खँडहर में हुई भोर/तड़के  के किसी मधुर अनुभव ने ‘चाँद के टुकड़े’ कविता को साकार किया है. अक्सर बिम्ब-विधान समझाने में इस कविता का प्रयोग किया करता हूँ.

‘प्रेम कविता का मौसम’ भी प्रेम में डूबे मनुष्य के प्रेम-कवि हो जाने की अभिव्यक्ति है.

मित्रों ने इन कविताओं को सराहा, मैं बहुत आभारी हूँ, और अधिक बेहतर लिखने की कोशिश करता रहूँगा. आपकी टिप्पणियों से अपनी कविता में मेरा विशवास बढ़ा है, ऊर्जा मिली है. धन्यवाद. मैं चाहूँगा कि मेरे वक्तव्य के बाद इन कविताओं को आप दोबारा भी पढ़ें. शुक्रिया.

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