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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

17 मई, 2015

अर्चना वैद्य करंदीकर की कविताएँ

1. स्वप्न की वास्तविकता

एक स्वप्न सा जैसे व्यतीत हो गया
सच होना जिसका स्वप्नातीत हो गया
मन के आँगन मे था जलाया
यादों का जो नन्हा दीपक
जिसे बचाया वर्षाओं से
और आँधियों से हर पग पर
उसी दीप का आज अचानक
स्नेह रीत हो गया....
माल सुवासित नव सुमनों की
अतिप्रिय था जिसका श्रंगार
जिससे तन मन उल्लासित था
फूलों का कोमल संसार
यौवन आज उन्ही कुसुमों का
देखो अतीत हो गया.....
सुदूर क्षितिज से सुन पडती बाँसुरी
कानों मे अमृत थी घोलती
तान पे जिसकी वसुंधरा
मनमुग्ध हो थी डोलती
स्वर आज उसी वेणु का
गीत व्यथा के पिरो गया....
एकत्र किया था अतीव यत्न से
जिसके लिए यह प्रेम कोष
और संजोए विविध भाव
अश्रु चितवन हर्ष रोष
वो सपनों मे आने वाला
स्वप्नप्रिय मनमीत खो गया....
०००००

२.याद

मैंने सुनी थी विरह की बातें मगर
कोयल तो कूकती है; फूल भी खिलते हैं;
पंछी भी चहकते हैं.....
कोई नहीं जान पाता
तुम्हारे न होने का अंतर
मेरे सिवा...
याद तुम्हारी आती है तो लगता है
जैसे मेरी किताब तुम्हारा चेहरा है
शब्द चेहरे की भाव भंगिमाएँ
और वाक्य तुम्हारी मुस्कान से
लगते हैं मुझे....
वैसे एक अंतर तो है
तुममे और किताब मे
तुम्हे पढना आसान है
मगर तुम्हारी याद के साथ
किताब पढना
बहुत बहुत मुश्किल.....!!!!!
०००००

३. पहेली

किसी की ख्वाहिशों सी जब बरसती है बूंदें 
गहरा जाती हैं उसकी कल्पनाएँ
सोचने लगती हूँ आखिर क्या है वो? सपना या सच?
अगर वो सपना है तो अलौकिक सपनीली सरगम पर डोलता
मन क्यों मचल जाता है
सपने का हाथ पकड कर हकीकत की दहलीज तक खींच लाने को?
और अगर वो है एक सच्चाई तो गाहे ब गाहे सच को
सपनों की गलबहियों मे क्यों देखता है पागल मन?
कभी लगता है सीधा सादा भोला भाला
मेरे मासूम से अरमान सा वो
और कोई पल महसूस करा जाता है
त्रिभुवन के ब्रह्माण्ड ज्ञान का कोई अंश उसमे
000

प्रस्तुति:- अलकनंदा साने
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टिप्पणियाँ:-

मनीषा जैन :-
कविताएं अच्छी लगी लेकिन संवेदना कुछ कम महसूस हुई। और अच्छी हो सकती थी। यदि ये कविताएं नवोदित कवि की हैं बहुत ही अच्छा प्रयास है। कवि को शुभकामनाएं।

निधि जैन :-
सुंदर कवितायें हैं। शब्दों का सुंदर प्रयोग।
पहली कविता में 'वर्षाओं' लिखा है, जो सही नही लगा।
दूसरी कविता में बढ़िया हुई है,अंतिम पंक्तियाँ जोरदार हुई हैं।
तीसरी कविता गद्य ज्यादा लगी।
मनीषा जी ने कहा भाव और प्रबल हो सकते थे उनसे सहमत हूँ।

फ़रहत अली खान:-
तीनों ही कविताएँ बेहद आला दर्जे की हैं। कवि की कल्पनाशीलता की दाद देनी होगी और अपने मन की बात को उम्दा शब्दों में लय के साथ पिरोना क़ाबिल-ए-तारीफ़ अमल है; और लय कहीं टूटती भी नज़र नहीं आती।
पहली कविता में ख़ासतौर पर अंतिम पाँच पंक्तियाँ बहुत प्रभावित करती हैं।
वहीँ दूसरी कविता में 'तुममें' और 'किताब' में अंतर बा-ख़ूबी समझाया गया है। ये कविता अपनी सरलता के कारण मन को सबसे ज़्यादा मोहक लगती है।
तीसरी कविता भी बढ़िया है।

इसके अलावा कुछ टाइपिंग की ग़लतियाँ बार बार नज़र आयीं:
'पढ़ना' को 'पढना'; 'तुममें' को 'तुममे'; 'उसमें' को 'उसमे' वग़ैरह वग़ैरह। ये ग़लतियाँ बार बार होती हैं इसलिए थोड़ी खलती हैं।
हालाँकि ये बात कविताओं की ख़ूबसूरती को कहीं से भी कम नहीं करती।

ब्रजेश कानूनगो:-
पहली कविता नवगीत की तरह आई है मगर भाषा और बुनावट पर अभी बहुत काम बकाया है।तीनो कविताओं में भाषा और कहाँ के दृष्टि से एक पहचान कवि की नहीं बन पाई है।कहीं बहुत अपरिपक्वता है तो कहीं भाषा को पंत महादेवी के काल में ले जाने की कोशिश लगती है।सुघड़ता और लय की दरकार करती हैं प्रस्तुत कवितायेँ।बधाई।

अनुप्रिया आयुष्मान:-
तीनों कविताएँ बहुत अच्छी लगी मुझे
। याद
कविता की पहली चार लाइन्स  बहुत ही अच्छी है। याद आने की  सुंदर भावनाओं का यथार्थ चित्रण है।

नयना (आरती) :-
पहली और दूसरी कविता अच्छी बनी हैं।तीसरी और अच्छी बन सकती थी। कवी/कवयित्री को शुभकामनाऐ

सुवर्णा :-
मुझे बढ़िया लगीं कविताएँ। कही कहीं लगा की भाषा थोड़ी तात्कालिक होती तो और अच्छा होता पर ये कवि की अपनी शैली अपनी पसंद है। कुल मिलाकर अच्छी लगीं कविताएँ

कविता वर्मा:
आज की कविताऐं डॉ अर्चना वैद्य करंदीकर की हैं ।तीनों ही कविताऐं अपनी सरल भाषा और मजबूत भाव पक्ष के लिये सुधीजनों द्वारा सराही गईं है ।मुझे भी तीनों कविताऐं अच्छी लगीं ।अर्चना जी थोडी देर में अपना प्रतिवेदन देंगीं तब तक कविताओं पर चर्चा जारी रहे ।

आर्ची:-: बिजूका पर आज अपनी कविताएँ देखकर किसी पत्रिका मे प्रकाशित होने जैसी खुशी महसूस हुई.. सभी सुधिजनों की प्रतिक्रियाएँ प्रशंसा और सुझाव पढकर जितना उत्साहित और प्रसन्न लग रहा है उतना शायद पिछले साल मेरे पहले कविता संग्रह अंतस का बिंब के प्रकाशन और लगभग सभी प्रतियाँ बिक जाने पर भी नहीं लगा .. सुषमाजी मनीषाजी रूपाजी निधिजी फरहतजी ब्रजेशजी अनुप्रियाजी नयनाजी सुवर्णाजी कविताजी बहुत आभारी हूँ आप सबकी जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय खर्च करके कविताएँ पढीं पसंद की और सुझाव भी दिए मैं अब आप सब गुणीजनों के सान्निध्य मे और भी उत्साह से अपना रचनाकर्म ज्यादा निखारने का प्रयास करूँगी
बहुत बहुत धन्यवाद!
अर्चना वैद्य करंदीकर

1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 01 जुलाई 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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